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अपना देश सदियों से बहुत उदार और सरल रहा है । परहित , सेवा भाव , दयालुता , कल्याण , करुणा ,अहिंसा इसका धर्म रहा है । शायद इसे कई बार गलत समझ कर इसे कमजोरी मान लिया गया है पर इतिहास गवाह है कि जिसने इसे कमजोरी मानी है उसे हमारे शूरवीरों ने कड़ी शिकस्त दी है पर हमने इतिहास से कुछ सिखा नहीं या फिर पढ़कर भुला दिया । समय बादल गया पहले लोग हमें कमजोर मानते थे अब हमने स्वयं को कमजोर बना लिया है । हाल ही की विदेशी और आंतरिक घटना खासकर चीन की धोंस ने हमें प्रभावित किया है । चीन की इतनी हिम्मत हमारे चुप रहने का नतीजा है , पाकिस्तान तो अलग है ही , अपने को कमजोर मान लेने का खामियाजा हम आज देख रहे हैं । अपने यहाँ कई नीति कथा है हम उससे से प्रेरणा ले सकते हैं । एक कथा यह भी है …… एक जंगल में एक विषधर रहता था । सभी उससे डरते थे । एक दिन उस रास्ते से एक धार्मिक व्यक्ति आया । वह उस ओर जाने लगा तो लोगों ने उन्हे मना किया । पर वे नहीं माने और सर्प के सामने चले गए सर्प उन्हे देख फुफकारा , साधू ने मंत्र पढ़ा , सर्प शांत ह गाय तो साधू ने उससे पूछा – तुम लोगों को हानि क्यों करते हो ? लोगों को हानि पहुंचाना ठीक नहीं । एक अहिंसक जीवन जियो । अपने लिए जियो और दूसरों को भी जीने दो । इसे याद रखना । याद रखोगे तो इसी जीवन में कोई महान उपलब्धि प्राप्त करोगे । मैं फिर आऊँगा । कहकर वे चले गए । सर्प सात्विक जीवन जीने लगा । लोग अब उससे डरते नहीं थे । एक दिन कुछ बच्चों ने उसकी पुंछ पकड़कर उसे जमीन पर दे मारा । वह अर्ध मृत हो गया । रात में जब उसे होश आया तो धीरे से अपने बिल में चला गया । वह बहुत कमजोर हो गया । एक दिन जब साधू वापस आयें तो उसकी हालत देख पूछा – ये कैसे हुआ ? उसने कहा – सात्विक भोजन करने से । सात्विक मन हो जाने से उसे यह भी याद नहीं था कि बच्चो ने उसे पटक दिया था । साधू के पूछने पर उसे यह घटना याद आई तो सब बताया । साधू ने कहा – तुम कैसे मूर्ख हो ? मैंने अवश्य कहा था कि किसी को हानि मत कारों , किसी को काटो मत । लेकिन तुम तरफ फुफकार तो सकते थे । तब वे भाग जाते । फुफकारना सीखो , अन्यथा वे तुम्हें नष्ट कर देंगे । …………. साधू कि यह सीख मान कर सर्प सात्विक भी रहा और अपना अस्तित्व भी बरकरार रख सका ।
क्या आज हमारी स्थिति उस सर्प कि तरह नहीं है जो न फुफकारने के कारण मृत प्राय हो गया था ।
पना
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