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विरोध के लिए विरोध .. एक सनक

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स्वामी विवेकानंद की एक उक्ति है – राष्ट्रीय रक्त में जो रोग व्याप्त रहा है , हर वस्तु का उपहास करने का , गंभीरता को खोने का , उसका त्याग करो । स्वामी जी की कही हुई बात आज भी अक्षरसः सत्य है । वर्ष 2013 -14 को स्वामी विवेकानंद सार्ध शती वर्ष के रूप में मनाया जा रहा है । उदेश्य है उनके विचारों को जन – जन तक पहुँचना । किन्तु यह समारोह भी कुछ लोगों के लिए आपतिजनक है । सभी जानते हैं कि स्वामी जी के विचार काफी यथार्थता एवं किसी विशेष समुदाय से न जुड़कर मानव कल्याण से जुड़े हुए हैं । उन्हीं विचारों में एक विचार यह था कि हमारेन युवाओं के शरीर फौलाद के होने चाहिए ………….. उन्हें व्यायाम करने चाहिए ………. । इस दृष्टिगत विवेकानंद केंद्र , कन्याकुमारी ने सूर्य नमस्कार महायज्ञ का आयोजन किया है । सूर्य नमस्कार के बारे में कहा जाता है कि यह सभी व्यायामों का राजा है यदि कोई व्यायाम न करके यदि सूर्य नमस्कार कर लिया जाय तो सारे शरीर का व्यायाम हो जाता है । यह व्यायाम शरीर का होता है न कि किसी धर्म या समुदाय का । पर पटना में इस महायज्ञ को एक समुदाय द्वारा दूसरे समुदाय की आस्था के साथ जोड़कर विरोध मार्च किया जा रहा है और संविधान विरोधी बताया जा रहा है । पता नहीं यह किस प्रकार की सनक है । कोई भी पढ़ा – लिखा व्यक्ति या व्यायाम को जानने वाला इसका विरोध नहीं कर सकता यह वही कर सकता है जो दिमाग से खाली हो और जिसे अखबार में नाम निकलवाने की आदत बन गई हो । विरोध करने वाले संगठन के कोर्डिनेटर की थोड़ी साहस भी देख लें या यों कहे कि वेवकूफी भी , उन्होने कहा है कि सरकार पिछले कुछ वर्षों से सरकारी खर्च पर पर्यटन विभाग द्वारा गंगा आरती करवा रही है । मुझे यह समझ में नहीं आ रही है कि जनाब ने गंगा आरती और सूर्य नमस्कार का विरोध तो कर रहे हैं पर क्या उन्होने कभी कब्रगाह की चहारदीवारी को घेरने पर सरकार का विरोध किया है या कभी किसी समुदाय या धर्म वाले ने विरोध मार्च किया है ? स्वामी जी उक्ति इन जनाब को सद्बुद्धि दे , ईश्वर से प्रार्थना है ।

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