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अभी दो बड़े दलों में एक बहुत बड़ा बदलाव हुआ है । भाजपा के अध्यक्ष के रूप में राजनाथ सिंह और काँग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी बने हैं । दोनों ने अपने -अपने बयान भी जारी किए हैं । राजनाथ सिंह ने कहा है कि मैं इसे पद के रूप में नहीं बल्कि एक ज़िम्मेदारी के तौर पर ग्रहण कर रहा हूँ । दूसरी तरफ राहुल गांधी ने कहा है कि = नकारात्मक राजनीति नहीं , मैं सकारात्मक राजनीति करना चाहता हूँ । दोनों के ही बयान अपनी पार्टी के स्तर पर बहुत ही माकूल है । जिस तरह आज भाजपा के अंदर कि स्थिति बनी हुई है उस अनुसार वास्तव में वर्तमान का अध्यक्ष पद जिम्मेवारी का ही है पर देखा जाय तो यह पद ज़िम्मेवारी का ही होता है । राहुल गांधी के बयान को सुनने के बाद ऐसा लगता है कि नव उपाध्यक्ष को इस बात का एहसास है कि राजनीति नकारात्मक होती जा रही है और यदि हम देश और पार्टी का विकास चाहते हैं तो इससे बचना चाहिए । पर , इसकी शुरुआत कहाँ से और कब होनी चाहिए । आज ,अभी से और अपनी पार्टी से या फिर इंतज़ार करना चाहिए कि जब दल में युवा आ जाय तब इसकी शुरुआत हो । यह तो लगता है कि राहुल गांधी में परिपक्वता आ रही है पर वे अभी भी अपरिपक्व हैं इससे भी इंकार नहीं किया जा सकता । जयपुर चिंतन बैठक में गृहमंत्री शिंदे ने जब पूरी राजनीति को ही नहीं बल्कि देश की कई सकारात्मक मुद्दे को नकारात्मकता की ओर धकेल दिया तो इसका प्रतिकार या इसपर सकारात्मक बयान राहुल जी की ओर से आ जाता तो शायद आज का बयान सार्थक तो होता ही साथ ही विश्व पटल पर अपने को देश हास्यास्पद स्थिति में नहीं देखता । बयान देना अलग बात है और करना अलग बात है । नकारात्मकता को हटाने के लिए राहुल जी को अपने ही दल के लोगों का सामना करना पड़ेगा । और शायद ये कर पाना उनके लिए कठिन भी हो सकता है ।
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