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केंद्र से बिहार को विशेष दर्जा देने की मांग नीतीश सरकार के द्वारा लगातार की जा रही है पर केंद्र सरकार इसकी उपेक्षा कर रही है । इस उपेक्षा का नतीजा है कि नीतीश सरकार या यूँ कहे कि जद यू अधिकार रैली करने जा रही है । यह भी सत्य है कि जो अधिकार आग्रह से नहीं मिलती उस अधिकार के लिए लड़ना भी वाजिब है । दरअसल , केंद्र से राज्यों को मिलने वाली राशि में बिहार की राशि में बराबर ही कटौती की जा रही है । गुस्सा भी स्वाभाविक है । बिहार अभी अपने बल पर विकास कर तो रहा है फिर भी दूसरे राज्यों की अपेक्षा इसकी विकास की गति धीमी है और इसे सहायता की जरूरत भी है । पिछले वर्ष से ही नीतीश सरकार जनमत तैयार कर रही है की केंद्र उसे विशेष दर्जा दें पर केंद्र इससे साफ इंकार कर रही है अंत में मजबूर हो कर सरकार अधिकार रैली की बात कर रही है ।
पर, इसका एक दूसरा पक्ष भी है । भारतीय अर्थशास्त्र में किसी भी देश या राज्य के विकास के लिए उसके आंतरिक संसाधनों के विकास पर ध्यान अत करने देने की बात कही गई है ।जिस देश या राज्य ने अपने आंतरिक संसाधनों को विकसित कर लिया उसे दूसरे के सामने हाथ फेलने की जरूरत नहीं पढ़ी । बिहार में आंतरिक संसाधन की कोई कमी नहीं है । यह अच्छी बात है कि राज्य विकास कर रहा है लेकिन ,सरकार अपने संसाधनों को विकसित करने में बहुत ज्यादा सफल नहीं हो सकी है । प्रारम्भ में,सरकार ने काफी कोशिश किया लेकिन वह आगे नहीं बढ़ सकी । खेती का विकास करने के लिए प्रोत्साहन तो दिया किन्तु,खेती के लिए जो जरूरते थी उसे किसानों को मुहेया नहीं करा सकी नतीजा साफ था जिस गति से खेती में विकास होनी चाहिए वो नहीं हो सकी । दूसरी तरफ उद्योगों के विकास की दिशा में भी सफलता नहीं मिल सकी । बिहार में चीनी मिलों की कभी बहुतायत थी पर आज उंगली पर गिनने लायक है । किन्तु , अधिकार की बात करने वाली नितीश सरकार अपने दायितों से मुक्ति नहीं पा सकती , उसे अपने कार्यों को निपटना होगा । सिर्फ अधिकार से नहीं बल्कि अपने संसाधनों से भी बिहार को आगे बढ़ाना होगा।
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