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हम भगवान की आरती क्यू करते है ?

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पुजा के अंत में हम सभी भगवान की आरती करते हैं । आरती के दौरान कई सामग्रियों का प्रयोग करते हैं इन सब का विशेष अर्थ होता है ऐसी मान्यता है की न केवल आरती करने से से बल्कि इसमे शामिल होने पर भी बहुत पुण्य मिलता है ।
आरती हमारे शरीर के पंच प्राणो का प्रतीक है । आरती करते हुए भक्त का भाव ऐसा होना चाहिए मानों वह पंच प्राणों की सहायता से ईश्वर की आरती कर रहा हो । हम सब जानते भी है कि सामान्य तौर पर पाँच बतियों से आरती की जाती है , इसे पंच प्रदीप भी करते हैं और पाँच प्रकार से आरती करने के कारण इसे पंचारती भी कहते हैं । ये पाँच प्रकार ये हैं – 1दीपमाला से 2 जल से भरे शंख से 3 धुले हुए वस्त्र से 4 आम ,पीपल के पतों से 5 आष्टांग यानि शरीर के पांचों भाग से । घी की ज्योति जीव के आत्मा की ज्योति का प्रतीक मानी जाती है । इसमे वेज्ञानिकता भी है । इसमे प्रयोग आने वाली सभी सामग्रियों का अपना महत्व है , जैसे , कलश ,नारियल ,सुपारी एवं तुलसी सभी में तरंगित ऊर्जा है , जो शरीर और वातावरण को लाभ देता है ।

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