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हमारे अतीत के गौरव ऐतिहासिक धरोहरों की सुरक्षा कितनी …..

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भारतवर्ष में हम बहुत से किले ,महलों ,मंदिरों को देखते हैं जो स्थापत्य कला के बेजोड़ नमूने हैं ,शायद उस तरह के नमूने आज बहुत ही कम देखने को मिले या न भी मिले । खजुराहो अपने आप में अदितिय है । अभी मैं कुछ दिन पहले मध्य प्रदेश ,राजस्थान गया था ,वहाँ के किले एवं मंदिरों को देखने के बाद ऐसा लगा कि हमारा वैभव एवं गौरव इन्ही में है। भारत की शानों -शोकत बहुत ही निराली थी , राजस्थान सरकार और मध्य प्रदेश सरकार ने इसे सँजोने का भरपूर प्रयास किया है और उसे पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित किया है । यह एक अच्छा प्रयास है । इससे हमारे आनेवाली पीढ़ियों को अपने अतीत के बारे मैं भरपूर जानकारी प्राप्त होगी साथ ही वे गौरव भी महसूस करेंगे । पर , दूसरी तरफ कुछ प्रांत ऐसे हैं जिन्होंने इस तरफ ध्यान ही नहीं दिया है । यदि ध्यान दिया है भी तो बहुत ही उपेक्षित भाव से बस एक कोरम पूरा किया है ,अच्छा है इतना भी कर दिया है । झारखंड और बिहार के कई ऐसे किले ,मंदिर हैं जो अपने गौरव गाथा को कहते हैं साथ ही अपनी प्राचीन धार्मिकता को भी दर्शाते है । पर, उसे ठीक कर विकसित करने का प्रयास नहीं हुआ । रोहतास गढ़ का किला गिरता नज़र आ रहा है । कल हरिश्चंद्र के पुत्र रोहिताश्व की गाथा लुप्त हो जाएंगी । वानाशूर की नगरी सुहागरा जो कभी शिव ग्राम के नाम से प्रसिद्ध था उसके धरोहरों को हम सहेज नहीं पा रहे हैं । बेगूसराय का जयमंगला गढ़ आज भी उपेक्षित है । इस प्रकार कई ऐसे प्रांत है जहाँ अपनी संस्कृति ,सभ्यता और राजनीति से जुड़े कई धरोहर हैं पर उसकी चिंता वे नहीं कर पा रहे हैं । यदि ये समाप्त हो गए तो हम और हमारी संतति अपनी संस्कृति एवं गौरव भरी जांकरीयों से महरूम हो जाएंगे । जरूरत है इन जगहों को चिनहित कर सुरक्षा प्रदान करने की ।

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