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हमारे बड़े -बुजुर्गों ने कहा है कि किसी काम को करने के लिए छोटा रास्ता अपनाना ठीक नहीं । रास्ता जितना लंबा और बड़ा होगा काम उतना ही पुष्ट और सफल होगा और संक्षेप में किए काम में हानि एवं असफलता की संभावना ज्यादा होती है । पर ,यह सिद्धांत क्या सिर्फ कहने के लिए है या फिर करने के लिए भी है । हमने इसकी उपेक्षा की है । अभी तक हम काम में ही सुंक्षिप्तिकरण करते रहे हैं लेकिन हद तो तब हो गई जब हमने संक्षेप में बोलना भी शुरू कर दिया । बयोलॉजी को बायो ,कैमिस्ट्रि को केम ,पॉलिटिकल साइन्स को पीएस और तो और पश्चिम से आयातित मम्मी -डेडडी शब्दो को मॉम एवं डैड बोलने लगे हैं । संक्षेप में बोलने से अर्थ का अनर्थ हो गया न । इस तरह बोलकर हम अपने को आधुनिक मानते हैं ,गौरव का अनुभव करते है । जबकि इस तरह से बोलने से आत्मीयता का भाव खत्म तो होता ही है साथ ही बोलने का सही अर्थ भी समझ में नहीं आता । इधर एक चलन और चला है कि जल्दी लिखकर अपनी बात को बता दें । यह चलन फेसबूक पर है ,जरा देखें उन्हें यदि ग्रेट लिखना हो तो उसके लिए ग्र८लिख्कर काम चला लेते है । अब आप समझते रहिए उन्होने क्या लिखा ।
आज का युवा अपनी बात को रखने में अँग्रेजी और हिन्दी दोनो का प्रयोग करते हैं । इसे हिंगलिश बोलते हैं । यानि न तो वे ठीक से हिन्दी बोलते हैं और न ही इंग्लिश । मेरी समझ में इस प्रकार की भाषा बोलने वाले लोगो की दोनों ही भाषा गलत हो जाती है । ठीक तो यह है कि जब हम हिन्दी बोलते हैं तो सिर्फ हिन्दी बोलें और अँग्रेजी बोलें तो सिर्फ अँग्रेजी । इससे दोनों ही भाषा अपनी ठीक होगी और उनका सम्मान भी बना रहेंगा । साथ हीं बड़े -बुजुर्गों की कही बातों का भी पालन हो जाएंगा । उन्होने सत्य ही तो कहा है कि छोटा और जल्दी में किया काम कभी ठीक नहीं होता तो ध्यान रखे कि जल्दी और छोटा करने के चक्कर अच्छी भाषा को खराब न कर दें ।
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