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यह अजीब है कि विरोध के बाद भी बिहार सरकार किशनगंज में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय खोलने की अनुमति दे रही है पर उससे भी अजीब बात यह है कि जो जमीन विश्वविद्यालय को देने की बात बिहार सरकार कर रही है वह जमीन वहाँ के जनजातियो की है । सरकार ने उनसे कुछ नहीं पूछा है । जनजातीय समाज इसका घोर विरोध कर रहा है । पर सरकार उनकी नहीं सुन रही । पिछले दिनों उन्होने मंत्री के विरोध में तीर -धनुष तान दिया था । वैसे किशनगंज प्रशासन उन्हे किसी से मिलने नहीं देती जिस कारण वह अपनी बात खुलकर नहीं रख पाते । इनके विस्थापन की शर्त आखिर ये कैसा निर्णय ?
एक बात मुझे लगता है कि सबके ध्यान में होगा कि किशनगंज क्षेत्र को चिकेन नेक कहा जाता है । यह बिहार ,बंगाल कि सीमा पर है और भारत और बंगला देश कि सीमा भी है ,कहते है कि यदि इस क्षेत्र पर कोई कब्जा कर लेता है तो पूरा नॉर्थ -ईस्ट देश से अलग हो जायगा । बंगला देश से घुसपेठ इसी साजिश का पहल था । इतने सवेदनशील क्षेत्र पर किसी भी प्रकार का निर्णय काफी सोच -समझ कर लेना वाजिब होगा न कि अपने हठ को लागू करना । यहाँ किसी तरह की राजनीति देश की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ करना है ।
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